बिहार के विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज है। इसका आगाज पिछले महीने ही गृहमन्त्री ने 140 करोड़ की वर्चुअल रैली के द्वारा कर दिया था।भजपा की सहयोगी जदयू और मजबूत विपक्ष राजद ने भी अपने अपने संसाधनों के अनुरूप डिजिटल या दूसरे माध्यमों से जनता के नब्ज टटोलने का काम शुरू कर दिया है।
मुंगेर प्रमंडल की बात करें तो इस जिले में कुल 22 विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में 22 में से 20 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, सिर्फ लखीसराय और
झाझा सीटें भाजपा की झोली में आई। नीतीश कुमार के पाला बदल के बाद स्थिति पर यदि गौर करें तो 22 सीटों में 8 सीटें राजद के पास और 4 सीट राजद की सहयोगी कांग्रेस के साथ पास है । किस तरह एनडीए के पास अभी भी गठबंधन से 2 सीटें कम है आप जब समीकरण बदल चुके हैं तो अगले चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है यह देखने योग्य होगा अगर जातीय समीकरण की बात करें तो भाजपा और जदयू के साथ होने से एनडीए की स्थिति मजबूत होने की संभावना है उदाहरण के तौर पर बेगूसराय जिले की बात की है तो आश्चर्यजनक तौर पर 2015 के चुनाव में एनडीए का सूपड़ा साफ हो गया था और पड़ोस के खगरिया जिले में भी उसका यही हश्र हुआ था बदले समीकरण में बेगूसराय और खगड़िया में एनडीए की स्थिति में सुधार होने की पूरी संभावना है मुंगेर जिले में भी अभी जदयू का 2 सितंबर कर जाए कब्जा है मुंगेर विधानसभा में भी भाजपा के युवा चेहरे प्रणव कुमार यादव ने राजद को कड़ी टक्कर दी लेकिन चुनावी रुझान ओके महागठबंधन के पक्ष में जाते थे अंतिम समय में बहुत कम मतों से राजद के उम्मीदवार विजय कुमार विजय को विजय घोषित कर दिया गया लखीसराय जिले में नीतीश कुमार के आधार मत हो के साथ-साथ के खास जाति के वोटरों की निर्णायक भूमिका होती है एनडीए के उम्मीदवार होने की स्थिति में वहां भी बदलाव की पूरी संभावना देती है। यही हाल बरबीघा विधानसभा का भी है पिछली बार बेगूसराय के पूर्व सांसद स्व राजो सिंह के पोस्ट सुदर्शन कुमार ने कांग्रेस उम्मीदवार की हैसियत से बड़ी जीत हासिल की लेकिन जदयू के अलग हो जाने के बाद इस बार उनकी जीत पर ग्रहण लग सकता है वैसे उनके लिए एक सुखद बाप यह की पिछली बार उनके प्रतिद्वंदी रहे समाजवादी नेता और जमीन से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ता शिवकुमार अभी एनडीए में नहीं तो एनडीए से अलग अगर शिवकुमार में चुनाव लड़ा तो वह एनडीए के आधार मतों में सेंध लगाएंगे। जमुई जिले में मैं भी एनडीए सीटों की संख्या में सुधार हो सकता है।
पिछली बार बेगूसराय में चौंकाने वाले परिणाम आये थे। बेगूसराय की सात की सात सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा जमाया था। परंतु इस बार के परिणाम कुछ अलग होंगे।भाजपा व जदयू के आधार मतों की बहुलता वाले बेगूसराय में इस बार NDA के बढ़त होने की पूर्ण सम्भावना है।
बेगूसराय में कांग्रेस की श्रीमती अमिता भूषण नगर विधायिका हैं जिन्होने पिछले चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी।उनकी जीत में भाजपा के आधार मतवाले उनके स्वजातीय मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई थी।इसबार महागठबंधन उम्मीदवार के रूप में उनकी नैया पार लगेगी के नहीं इसपर सन्देह है।पड़ोस के तेघड़ा विधानसभा के चुनावी नतीजे 2010 की तरह 2015 में भी चौकाने वाले थे जब राजद के पैराशूट उम्मीदवार वीरेन्द्र कुमार ने अच्छे अंतर से यह सीट राजद की झोली में डाल दी।इसबार उन्हें उम्मीदवारी मिलेगी भी इसमें संदेह है।बछवाड़ा का संग्राम इसबार भी त्रिकोणीय होगा।सारा दारोमदार उम्मीदवारों के नाम पर निर्भर है।चेरिया बरियारपुर से फिलहाल मंत्री रही मंजू वर्मा विधायक हैं और जदयू उन्हें उम्मीदवारी देगी इसमें संदेह है।बखरी जो कभी वाम का किला था वो पूरी तरह छिन्नभिन्न हो चुका है और पिछले पंद्रह वर्षों से कभी राजद तो कभी भाजपा का कब्जा रहा है।बखरी में इस बार भी सीपीआई से त्रिकोणीय संघर्ष के पूरे आसार हैं।साहेबपुर कमाल वैसे तो माय समीकरण के मुफीद बैठता है पर 2010 व 2005 के चुनावों में वहां जदयू के मो असरफ व परवीन अमानुल्लाह ने जीत हासिल की थी ।उसके बाद राजद के श्री नारायण यादव ने 2015 में राजद उम्मीदवार के रूप में कब्जा जमाया।अगले चुनावों में यह सीट इसके पाले में जाती है और उम्मीदवार कौन होता है उसपर जीत हार का फैसला होगा।
खगड़िया की चार सीटों में 3 पर एन डी ए के उम्मीदवारों का कब्जा है अलौली की एक सीट अभी राजद के पाले में है।अलौली लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान का गृह क्षेत्र है और पिछले रामविलास पासवान की चुनावी सफर की शुरुआत यहां की विधायकी से शुरू हुई थी।उसके बाद उनके अनुज पशुपति कुमार पारस कई बार विदायक रहे और मंत्री भी बने।पर 2010 के चुनाव में उनके सर से अलौली का ताज जाता रहा।अभी राजद के चंदन कुमार वहां के विधायक हैं।इस बार लोजपा के एन डी ए में बने रहने की स्थिति में अलौली की सीट लोजपा के कोटे में जाने की भी पूरी सम्भावना है।पर हर बार की तरह सुप्रीमो के परिवार का ही कोई सदस्य वहां से उम्मीदवार होगा इसको लेकर थोड़ा पेंच है।अभी सुप्रीमों के परिवार का कोई सदस्य बेरोजगार नहीं है तो फिर यह सीट किसे मिलेगी यह कहना मुश्किल है।खगड़िया और बेलदौर से जदयू पुराने उम्मीदवारों को ही मौका देगी इसकी पूरी सम्भावना है।परबत्ता से वर्तमान विद्यायक राम नन्दन प्रसाद सिंह इस बार अपने बेटे डॉ संजीव को उत्तराधिकारी घोषित कर चुके हैं।पेशे से चिकित्सक डॉ संजीव पिछले कई वर्षों से पिता का कार्य सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।पिछले चुनाव में स्थानीय निकाय की बेगूसराय खगड़िया सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने का व्यक्तिगत अनुभव भी उनके पास है।उक्त चुनाव में उन्होंने भाजपा के विजयी उम्मीदवार रजनीश कुमार को कड़ी टक्कर दी थी और अल्प मतों से चुनाव हार गए थे।इसबार अगर परबत्ता से वो एन डी ए के उम्मीदवार होते हैं तो उनकी सफलता लगभग निश्चित है।
जमुई जिले की चार सीटों में भी काफी उलटफेर देखने को मिल सकता है।अभी सिर्फ झाझा सीट भाजपा के पास है शेष तीन पर महागठबंधन के उम्मीदवार काबिज हैं।जमुई जिले के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह की जदयू से नजदीकी और जिले का जातीय समीकरण NDA को 2010 की तरह चारो सीट पर अपना कब्जा दिला सकता है।
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