शेखपुरा की सरगर्मी


Munger Times के घोड़े का अगला पड़ाव है शेेेखपुुुरा विधानसभा।
शेखपुरा  अब बिहार के सबसे छोटे जिला में एक शेखपुरा का मुख्यालय है।बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह का पैतृक गांव माउर अब इसी जिले में पड़ता है और एक बार उन्हें इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने का भी मौका मिला।यह विधानसभा एक समय सीपीआई का भी मजबूत गढ़ था और 1962 से सीपीआई ने लगातार तीन बार यहां से चुनाव जीता।
विधानसभा की चर्चा में एक और शख्स  की याद किये बिना अधूरी रहेगी उस शख्सियत का नाम है बाबू राजो सिंह! एक जमाना था जब इस विधानसभा के विधायक स्व राजो सिंह की बिहार की राजनीति में धमक चलती थी।मुख्यमंत्री बदले या दल बदले उनकी पहुंच व प्रभाव उनके जीते जी कम नहीं हुई।बिहार कांग्रेस की नकेल उनकी हाथ हुआ करती थी उसवक्त शेखपुरा मुंगेर जिले का एक प्रखंड मात्र हुआ करता था।उनकी हनक से मुंगेर जिले के कलक्टर भी सकपकाए रहते थे।एक गुरुजी से  मुखिया और सांसद बनने तक उनका सफर निर्बाध रहा उनकी यह ताकत महत्वाकांक्षी नेताओं की राह की बाधा बन चुकी थी।खुद बेगूसराय से सांसद तो बेटा शेखपुरा का विधायक और राबड़ी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री।शेखपुरा विधानसभा के साथ पड़ोस के बरबीघा व सिकंदरा के मतदाताओं पर भी उनकी पकड़ थी यही मजबूती उनके लिये काल बन गयी।एक दिन अपने द्वारा बनाये गए राजो सेवासदन में क्षेत्र की जनता की समस्याओं को सुन रहे थे तो अत्याधुनिक हथियारों से लैश अपराधियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी।हत्या में उस समय के कुख्यात अपराधी अशोक मेहता का नाम आया था।राजो बाबू एक सधे हुये राजनीतिज्ञ थे वो बोलचाल में दबंग जरूर थे पर अपराध से कोई लेना देना नहीं था।राजो सिहं की हत्या पूर्णतः राजनीतिक थी।शक के दायरे में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का नाम आया और बरबीघा क्षेत्र के विधायक रहे,पुर्व कांग्रेस अध्यक्ष व मौजूदा सरकार में मंत्री अशोक चौधरी का नाम भी साजिश करने वालों में शुमार था।शक के दायरे में तो एक तत्कालीन राज्यसभा सांसद व नीतीश कुमार के कृपा पात्र रहे जदयू के कद्दावर नेता भी थे पर प्रशासन पर मजबूत पकड़ की वजह से वो बेदाग होकर निकले।
खैर राजो बाबू की कहानी फिर कभी सुनेगें।अभी तो वर्तमान विधायक और क्षेत्र का जायजा ले लें।
यह विधानसभा राजो बाबू की हत्या के बाद भी उनके पुत्रबधू के कब्जे में रहा पर परिसीमन के बाद हुए समीकरण के बदलाव की वजह से 2010 में जेडीयू के श्री रणधीर कुमार सोनी के हाथों शिकस्त खानी पड़ी।
रणधीर कु सोनी
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राजो बाबू की हत्या के वक्त रणधीर कुमार सोनी कटारी पंचायत के मुखिया थे इनकी गिनती भी दबंगों में होती थी।राजो बाबू की हत्या के भी ये आरोपी थे लेकिन अब शायद राजो बाबू के पौत्र और हत्या के आरोपियों के बीच सुलह हो गयी है।इनको थाने द्वारा दी गयी क्लीनचिट के आदेश के खिलाफ हाइकोर्ट में दायर याचिका को राजो बाबू के पौत्र व विधायक सुदर्शन कुमार ने वापस ले लिया है। राजग के बने रहने की स्थिति में रणधीर कुमार सोनी का जदयू से टिकट भी लगभग तय है और समीकरण भी इनके पक्ष में है।महागठबंधन की ओर से चर्चित चेहरों में कोई भी दावेदार उतना दमदार नहीं दिख रहा जो इनके सामने बड़ी चुनौती दे सके।
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