परबत्ता विधानसभा
आज मुंगेर टाइम्स का चुनावी घोड़ा है गंगा पार के परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में।हम खंगालेंगे यहां का इतिहास,महसूस करेंगे वर्तमान को और खोजेंगे भविष्य की संभावनाओं को।
परबत्ता विधानसभा के इतिहास को देखें तो एक आश्चर्यजनक तथ्य आपको दिखेगा कि स्वतंत्र भारत के पहले दो चुनावों में यहां से सोशलिस्ट उम्मीदवार श्री कुमार त्रिवेणी कुमार ने 1951 व 1952 में जीत दर्ज की थी।उसके बाद के तीन चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार श्री शिवचन्द्र मिश्र विजयी हुये।1967 के चुनाव में फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार सतीश प्रसाद सिंह ने जीत का परचम लहराया।उसके बाद फिर से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।लालू प्रसाद के आगमन सेशुरू हुई तथाकथित सामाजिक न्याय की राजनीतिक दौर में जनता दल या राजद के टिकट पर विद्यासागर निषाद व सम्राट चौधरी ने जीत दर्ज की।सम्राट चौधरी के अयोग्य घोषित होने के बाद हुए उपचुनाव में जनता दल यू के टिकट पर श्री रामानंद प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की जो बीच के एक कार्यकाल को छोड़कर आजतक जारी है।सम्प्रति जदयू के कद्दावर नेता,कूटनीति के माहिर खिलाड़ी रामानंद प्रसाद सिंह परबत्ता विधानसभा के पर्याय बन चुके हैं।2015 में हुये चुनाव में भी भाजपा द्वारा इन्हें घेरने की कोशिश असफल हुई और महागठबंधन की लहर अपने व्यक्तिगत प्रभाव के बूते 53 फीसदी लेकर अव्वल रहे।उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के रामानुज चौधरी को 28 फीसदी मत ही मिल पाए।
रामानंद प्रसाद सिंह की निरंतर जीत के पीछे उनकी क्षेत्र के विकास की चिंता व इसके लिये हर सम्भव प्रयत्न सबसे बड़ा कारण है।राज्य या केंद्र द्वारा घोषित किसियोजना के अपने विधानसभा में कार्यान्वन के लिये ये सतत प्रयासरत रहते हैं।जिले के लिये घोषित योजनाओं को गोगरी जमालपुर या परबत्ता तक खींच लाने के मौके को कभी नहीं चूकते।नीतीश कुमार से उनके प्रगाढ़ सम्बन्ध भी परबत्ता विधानसभा के विकास में मदद प्रदान करते हैं।विकास के प्रति दूरदर्शी नजरिये व प्रतिबद्धता की वजह से ही अगुआनी घाट व सुल्तानगंज के बीच गंगा पर पल बन रहा है।एक तरफ मुंगेर में वर्षों संघर्ष के बाद शुरू हुआ पुल अभी आधा अधूरा ही चालू हुआ,दूसरी तरफ अगुआनी घाट पुल के रिकॉर्ड समय में पूरा हो जाने व चालू हो जाने के आसार हैं।इस पुल की योजना से लेकर इसकव क्रियान्वयन तक में कहीं न कहीं इनके पूर्व के तकनीकी अनुभव व दूरदर्शिता की झलक मिलती है।
अगुआनी घाट पर बना पुल इनके द्वारा किये गए सारे विकास कार्यों को अविस्मरणीय बना देता है।इस पल के बनने से अलग थलग पड़े एक टापूनुमा क्षेत्र को न सिर्फ जिले बल्कि झारखण्ड व बंगाल से सीधा संपर्क में ला देगा।
हालांकि इनके सामाजिक कार्यों में इनके चिकित्सक पुत्र डॉ संजीव की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।उन्होंने अपने पिता के कार्यों को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभाई है।एक बार बेगूसराय खगड़िया स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र से विधान पार्षद का चुनाव भी लड़ चुके हैं जिसमें उन्हें असफ़लता मिली।यह चुनावी अनुभव भी डॉ संजीव को अपने पिता की बनाई राजनीतिक जमीन को और मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुई है।
आज पिता की तरह डॉ संजीव भी परबत्ता विधानसभा की जनता से परिवारिक सदस्य की तरह घुलमिल गए हैं।
अब देखना यह है कि आगामी विधानसभा में रामानंद प्रसाद सिंह खुद चुनाव लड़ते हैं या अपनी विरासत पुत्र डॉ संजीव को सौंप देते हैं।स्थिति जो भी बने परबत्ता का ताज फिलहाल किसी अन्य के माथे जाता नहीं दिखता।