साहेबपुर कमाल विधानसभा साहेबपुर कमाल एवं बलिया सामुदायिक विकास खंडों से मिलकर बना है।
परिसीमन के बाद इस सीट से जदयू की मो.परवीन अमानुल्लाह ने जीत का परचम लहराया और नीतीश सरकार में मंत्री भी बनी।कुछ मतभेदों की वजह से 2014 में मन्त्रिमण्डल व विधानसभा से इस्तीफा देकर उन्होंने आम आदमी पार्टी जॉइन कर ली।उसी साल हुये उपचुनाव में पुराने बलिया विधानसभा से कई बार जीत चुके श्री नारायण यादव ने पुनः यह सीट राजद की झोली में डाल दी।2015 के चुनाव में साहेबपुर कमाल का मुकाबला एकतरफा रहा और श्री नारायण यादव 78225 मत बटोर कर अव्वल रहे।लोजपा के मो असलम मात्र 32751 मतों पर सिमट कर रह गए।वहीं निर्दलीय भाग्य आजमा रहे सुरेंद्र विवेक 12259 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे।
Pic Source:Election In India
साहेबपुर कमाल विधानसभा अल्पसंख्यक व यादव बहुल क्षेत्र है और राजनीतिक दलों द्वारा इन्हीं समूहों के उम्मीदवार देने की परिपाटी है।पूर्व के बलिया और सा.कमाल क्षेत्र से जीत भी इन्हीं समूह के उम्मीदवारों की होती रही है।2014 के उपचुनाव में इस सीट से भाजपा ने गैर मुस्लिम व यादव उम्मीदवार देकर इतिहास बदलने की असफल चेष्टा की थी। हालांकि पिछले लोकसभा चुनावों के नतीजों ने इन सारी अनुमानों को गलत ठहराया और उम्मीदों के विपरीत भाजपा के उम्मीदवार को यहां सर्वाधिक मत मिले।
आनेवाले चुनाव में महागठबंधन की तस्वीर साफ है कि यह सीट राजद के कोटे में जायेगा और उम्मीदवार भी सम्भवतः श्री नारायण यादव ही होंगे। NDA की तस्वीर साफ नहीं है कि यह सीट किसके खाते में जाएगी।पुराना पैटर्न चला तो इस सीट के लोजपा के खाते में जाने की सम्भावना है।लोजपा भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार पर भरोसा करती है या कुछ नया प्रयोग करती है यह देखना होगा।बता दें कि पिछले दो चुनावों में निर्दलीय भाग्य आजमा रहे ई सुरेंद्र विवेक ने वक्त की नजाकत को समझते हुए लोजपा जॉइन कर लिया है।फिलहाल वो लोजपा के महासचिव हैं और हमेशा की तरह क्षेत्र में सामाजिक कार्यों में भरपूर धन व समय खर्च कर रहे हैं।उनके रिकॉर्ड भी उतने बुरे नहीं हैं गत दो चुनावों में अपने बलबूते 15 हजार मत ले आना कोई खेल नहीं होता।
हालांकि उनका सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष उनका भूमिहार होना है।भूमिहार बहुल जिले की तीन सीटों पर NDA इसी जाति के उम्मीदवार देती है।पिछली बार बेगूसराय विधानसभा से सुरेंद्र कुमार मेहता की हार से चौथे भूमिहार उम्मीदवार उतारने की NDA की मजबूरी है।इस हालत में सुरेंद्र विवेक के मंसूबो पर फिर पानी फिर सकता है।
तस्वीरों को साफ होने के लिए हम सबको चुनाव के तिथियों की घोषणा का इंतजार करना पड़ेगा।
satik akalan
जवाब देंहटाएं