बिहार के 5 हजार निजी स्कूलों को 11 साल से मान्यता का इंतजार है। फाइल प्रदेश के विभिन्न जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में लटकी है। वर्ष 2011 में बिहार सरकार ने नोटिस जारी किया था कि 30 नवंबर तक आवेदन करने वाले विद्यालयों को ही मान्यता दी जाएगी, इसके बाद बिना मान्यता वाले विद्यालयों पर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन 11 साल बाद भी इस आदेश का पालन नहीं हुआ और आज भी विद्यालयों की फाइल आगे नहीं बढ़ पाई है। शिक्षा पदाधिकारियों पर आरोप लगाते हुए एसोसिएशन ने सीएम को पत्र लिखा है।
11 साल में आदेश पर नहीं हुआ काम
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने वर्ष 2011 में आदेश जारी किया था कि 30 नवंबर तक हर हाल में स्कूलों को मान्यता की फाइल संबंधित जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में जमा कर देनी है। साफ आदेश था कि ऐसा नहीं करने वाले विद्यालय नहीं चलेंगे, लेकिन आज भी प्रदेश में हजारों की संख्या में ऐसे ही चल रहे हैं। 2011 में आवेदन करने वाले विद्यालयों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और ना ही भौतिक सत्यापन किया गया। स्कूलों का तो यह भी आरोप है कि मान्यता उन्हें ही मिली है जो अधिकारियों की गणेश परिक्रमा किए।
स्कूल संचालकों का कोरोना में रोना
स्कूल संचालकों का कोरोना में मान्यता को लेकर रोना है। उनका कहना है कि सीएम तक से इस मामले में मांग की गई है। प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद का कहना है कि वह इस संबंध में सीएम को पत्र लिखे हैं। मुख्यमंत्री के साथ शिक्षा मंत्री से भी मांग की जा रही है कि स्कूलों की मान्यता को लेकर सरकार गंभीर हो। मांग यह भी की गई है कि जिस तरह से सीबीएसई ने स्कूलों की मान्यता को लेकर गंभीरता दिखाई है वैसे ही जिला शिक्षा पदाधिकारी को भी गंभीर होना होगा। मांग की गई है कि जिन विद्यालयों की मान्यता कोरोना काल में खत्म हो रही है उन्हें एक्सटेंड किया जाए। कोरोना काल में स्कूल मान्यता को लेकर परेशान है।
मान्यता नहीं होने से 'राइट टू एजुकेशन' पर संकट
मान्यता नहीं मिलने से ऐसे विद्यालयों में 'राइट टू एजुकेशन' पर संकट है। नियम तो है सभी निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने का लेकिन जब विद्यालय की मान्यता ही नहीं होगी तो गरीब परिवार के बच्चों को लाभ कहां से मिल पाएगा। शमायल अहमद की मानें तो हर जिले में 150 से 300 तक स्कूल हैं, इसमें मान्यता नहीं पाने स्कूलों की संख्या भी अधिक है। उनका कहना है कि शिक्षा मंत्री और शिक्षा सचिव से मांग की गई है कि इस मामले में गंभीरता दिखाई जाए। कोरोना काल में स्कूलों के संचालक बार-बार दौड़कर कार्यालय नहीं जाएं, इसकी व्यवस्था बनाई जाए। 9 माह से बंद स्कूल के संचालक की यह स्थिति नहीं है कि अब मान्यता के लिए दौड़ सकें।
स्कूल संचालकों ने की जांच की मांग
शमायल अहमद ने कहा है कि निजी स्कूलों के साथ बैठक में निर्णय लिया गया है 25 प्रतिशत मुफ्त शिक्षा की जांच कराई जाए। शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों से मांग की गई है कि पिछले दो साल में पटना जिले में लाटरी की व्यवस्था से 25 प्रतिशत बच्चों को मुफ्त शिक्षा के लिए चयनित किया गया। जिन बच्चों का नाम लाटरी में निकाला गया और जो एडमिशन लिए उनके गार्जियन का सत्यापन कराया जाए। गरीब के बच्चों के नाम पर किसका एडमिशन किया गया, यह पता चल जाएगा। आरोप है कि लाटरी की व्यवस्था कर गरीब बच्चों का हक मारा जा रहा है। मांग है कि कमिटी बनाकर इसका सत्यापन किया जाए।
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