सूबे में बच्चों के नाटेपन में काफी कमी आई है। यानी, बच्चाें की औसत लंबाई बढ़ रही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 की रिपाेर्ट के अनुसार पिछले 5 वर्षाें में पूरे बिहार में नाटापन (उम्र के हिसाब से लंबाई का कम होना) में 5.4% की कमी आई है। 2015-16 में हुए सर्वेक्षण-4 की रिपाेर्ट के अनुसार सूबे में 48.3% बच्चाें की औसत लंबाई उम्र के हिसाब से कम थी।
जो 2019-20 में हुए सर्वेक्षण- 5 के अनुसार घट कर 42.9% रह गई है। नाटापन में आई कमी का मुख्य कारण पाेषण काे लेकर लगातार चलाए गए अभियान काे माना गया है। कुपोषण व संक्रमण जैसे कारकों के कारण बच्चे नाटापन के शिकार हाेते हैं। इससे उनका शारीरिक व बौद्धिक विकास भी अवरुद्ध हाेता है।
मुजफ्फरपुर में नाटेपन से ग्रसित हैं 47.9% बच्चे
सूबे मेें अव्वल शिवहर जिले में सर्वेक्षण-4 के अनुसार 53% बच्चे औसत से कम लंबाई के थे, जबकि सर्वेक्षण-5 में 18.6% घट कर यह आंकड़ा 34.4% रह गया है। यह कमी राज्य के औसत से 3 गुना अधिक है। वैशाली जिला 15.2% कमी के साथ दूसरे नंबर पर है। यहां 38.3% बच्चे नाटापन से ग्रसित हैं। 15% कमी के साथ खगड़िया तीसरे, 11.5% के साथ नालंदा चाैथे, 11.1% कमी के साथ मुंगेर जिला 5वें नंबर पर है। मुजफ्फरपुर जिले में मात्र 5.3 फीसदी की कमी आई है। सर्वेक्षण-4 में यहां 47.9 फीसदी बच्चे नाटापन से ग्रसित थे और सर्वेक्षण-5 में यह 42.6% है।
बेहतर पोषण ही उपाय
बच्चे के विकास में माता-पिता का भी प्रभाव हाेता। पर, यह बेहतर पाेषण से ठीक हो सकता है। कुछ रोग बच्चे के विकास को प्रभावित ताे कर सकते हैं, लेकिन समय पर ध्यान देने से तबीयत ठीक होते ही सब नॉर्मल हाे जाता है।
बाल कुपोषण मुक्त बिहार अभियान बना सूत्रधार
सूबे में 2014 से बाल कुपोषण समाप्ति का अभियान चल रहा है। इसके तहत हुए प्रयासों से नाटापन में लगातार कमी अा रही है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, समेकित बाल विकास सेवा सुदृढ़ीकरण व पोषण सुधार योजना (आईएसएसएनपी), पोषण अभियान व ओडीएफ़ जैसे कार्यक्रमों का बेहतर क्रियान्वयन भी नाटापन में कमी लाने में सकारात्मक प्रभाव डाला है।
बच्चे की लंबाई के साथ वजन का भी अनुपात में बढ़ना जरूरी
बच्चे का वजन और लंबाई दोनों साथ बढ़ना जरूरी है। न तो सिर्फ लंबाई, न ही सिर्फ वजन का ही बढ़ना ठीक है। वजन और लंबाई दोनों का उचित विकास जरूरी है। ऐसे में चिकित्सकाें की सलाह है कि इस दाैरान उनके आहार व रूटीन का पूरा ध्यान रखा जाए।
बच्चे के विकास को प्रभावित करने वाले ये हैं प्रमुख कारक
- गर्भावस्था में मां का हेल्थ: गर्भावस्था में मां का स्वास्थ्य बच्चे के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। बल्कि, मां की डाइट, वजन और लाइफस्टाइल का जन्म के एक साल तक बच्चे पर प्रभाव पड़ता है। एक गर्भवती महिला जो कुछ खाती है वह बच्चे काे भी ग्रहण हाेता है।
- जन्म के समय बच्चे का वजन: जन्म के समय बच्चे का वजन इस बात का सूचक है कि गर्भ में उसे कितना पोषण मिला था। यदि उनका जन्म के समय वजन अधिक होता है, तो वे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और अगर कम होता है तो इसके विपरीत उनका विकास तेजी से होता है।
- स्तनपान व उचित आहार: जन्म के छह महीने तक सर्वाधिक पोषण स्तनपान से मिलता है। यह बहुत हद तक शारीरिक विकास निर्धारित करता है। मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार है। इसके साथ 6 माह के बाद अर्ध-ठोस या ठोस आहार जरूरी होता है।
लंबाई व वजन ठीक रखने के लिए बचपन से ही उनकी डायट का रखा जाना चाहिए पूरा ध्यान: दूध बच्चों का बेस्ट फूड ऑप्शन है। हर दिन सोने से पहले बच्चे को दूध पिलाने से उनकी हड्डियां मजबूत होती हैं। पालक आयरन का अच्छा सोर्स है। यदि वे इसे सब्जी में न लेना चाहें ताे पालक सेंडविच या दाल में डाल कर खिला सकते हैं। इनके अलावा अंडा, सोयाबीन समेत प्राेटीन बढ़ानेवाले अन्य चीजें भाेजन में शामिल करें।
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