मेरी राय यह है कि #चिराग_पासवान संघ की कूटनीतिक साजिश के शिकार हुए हैं।वैसे शुरू से मैं उनकी योग्यता, काबिलियत का प्रशंसक रहा हूं।तेजस्वी की तरह उनके पिता स्व रामविलास पासवान जी पर कोई दाग नहीं रहा हां परिवारवाद के आरोप उनपर हैं पर आज कौन राजनीतिक दल इससे अछूता है।अब तो वामपंथी नेताओं की दूसरी पीढ़ी भी राजनीतिक विरासत संभालने आगे आ रही है।हां वामदलों में आये नेटपुत्रों को सामान्य कार्यकर्ताओं के समान ही संघर्षों से गुजरना पड़ता है रातों रात उसे पिता माता की गद्दी नहीं सौंपी जाती।
यहां यह कहना जरूरी है कि रामविलास पासवान दलित नेता जरूर थे पर उनकी राजनीति बुर्जुआ वर्ग के इर्दगिर्द ही घूमती रही।2005 में अल्पसंख्यक को CM बनाने की जिद के कारण उनकी पार्टी टूटी पर आगे जाकर वो भाजपा के साथ खड़े मिले।
अब लोजपा के ताजा घटनाक्रम से यह सवाल उठ रहा है कि लोजपा और स्व रामविलास पासवान के #चिराग के भविष्य का क्या होगा।इस विषय में मेरी राय है कि ये पालाबदल अस्वाभाविक नहीं है अब राजनीति पूरी तरह सत्ता पाने का खेल है।दल की विचारधारा अलग हो सकती है पर नेताओं की विचारधारा सिर्फ कुर्सी पाने की होती है।
मंत्री बनने की चाहत में लोजपा को तोड़ने, उसपर कब्जे की कोशिशों को भी वर्तमान राजनीति के अनुसार अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।दरअसल चिराग पासवान भाजपा की क्षेत्रीय दलों व विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के गेमप्लान का शिकार हो गए।हालांकि उन्होंने भाजपा द्वारा दिये गए टास्क को पूरा कर दिखाया पर खुद खाली हाथ रह गए अब तो उनकी पार्टी ही सांसद और विधायक विहीन हो गयी।
आज ANI को दिए गए इंटरव्यू में चिराग काफी परिपक्व व संतुलित दिखे।उन्होंने हर सवालों को बड़े ही सुंदर व तर्कपूर्ण तरीके से जबाव दिया।अगर उनकी बातों को सही मानें तो लोजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी व जिला स्तर की कमिटी के बहुमत का समर्थन उन्हें प्राप्त है। सोशल मीडिया की खबरों व प्रतिक्रिया का आकलन भी यही संकेत देता है कि बिहार के युवा चिराग के साथ हैं।
आज चिराग ने जो आत्मविश्वास दिखाया और आगे की रणनीति बताई उससे ही स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार की जनता,युवा और खासकर पासवान मतदाता किनके साथ है।यदि आधे से ज्यादा मतदाताओ और लोजपा समर्थकों का साथ उन्हें मिला तो समझिये लोजपा और चिराग दोनों का भविष्य सुरक्षित है।
लोजपा से अलग हुये सांसदों में पशुपति कुमार पारस को छोड़ किसी अन्य में अपने बूते विधायक बनने की भी औकात नहीं है।पशुपति कुमार पारस जब भाजपा के साथ रहकर अलौली सीट नहीं जीत पाए तो आगे वो क्या कर पाएंगे इसमें मुझे सन्देह है।लेकिन चिराग के पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं और पाने के लिए पूरा बिहार है।
देखना यह होगा कि लोजपा की आगामी कार्यकारिणी क्या निर्णय लेती है। लोकसभा में लोजपा के बागी गुट को लोजपा के सांसद के रूप में मान्यता देने के लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को चिराग पासवान कैसे चुनौती देते हैं और अंतिम रूप से लोकसभा अध्यक्ष व चुनाव आयोग का इसपर क्या निर्णय होता है।
चिराग पासवान ने यह ऐलान किया है कि वो अब बिहार में ही रहेंगे और पार्टी के बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट अभियान को पुनः आरम्भ करेंगे।यदि वो सचमुच ऐसा कर पाए तो बिहार में अपने पिता स्व रामविलास पासवान की विरासत को शायद अपने पाले में रखने में वो कामयाब हो जाएं। उनके पिता की मृत्यु के बाद स्व पासवान के समर्थकों के बड़े हिस्से की सहानुभूति उनसे जुड़ेगी और अगले चुनाव तक लोजपा के वास्तविक वारिस हो जाएंगे।
उन्हें अगले चुनाव तक लोजपा को गठबंधन से आज़ाद कर लेना चाहिये और चुनाव के पहले परिस्थितियों के आकलन के हिसाब से किसी गठबंधन में शामिल होना चाहिये।
चिराग के पास अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने का सुनहरा अवसर है क्योंकि लालू नेपथ्य में जा चुके,नीतीश कुमार की भी शायद यह आखिरी पारी हो।इनदोनों नेताओं से रिक्त हुई राजनीतिक जमीन के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को हासिल करने का चिराग के पास सुनहरा मौका है।